सड़कों से संसद तक संग्राम

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देश की 18वीं लोकसभा के प्रथम संसद सत्र की शुरुआत दो दिन पहले विपक्ष के सौहार्दिक पूर्ण और सकारात्मक पहल से हुई थी महज 2 दिन के अंदर वह सत्ता पक्ष के पुराने नकारात्मक रवैये के कारण लोकसभा के दोनों सदनों में नेता प्रतिपक्ष के संबोधन के दौरान उनके माइक बंद करने और उसे लेकर होने वाले हंगामे के कारण कार्यवाही स्थगन तक पहुंच गई। किसी तरह तीसरी बार सत्ता शीर्ष तक पहुंचने वाली भाजपा और एनडीए के इस नकारात्मक रवैया से विपक्ष तो क्या सत्ता पक्ष में बैठे तमाम लोग भी सहमत नहीं दिख रहे हैं यह अलग बात है कि वह कुछ भी कहने या विरोध करने की स्थिति में न हो। सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि संसद में जिस पेपर लीक मामले को लेकर विपक्ष अपना पक्ष सरकार के सामने रखना रखना चाहता है और उस पर नियम 267 के अंतर्गत चर्चा की मांग कर रहा है वह सत्ता में बैठे लोगों को कतई भी बर्दाश्त नहीं है। देश के जो करोड़ों युवा इस मुद्दे से प्रभावित है वह भी सत्ता के इस तमाशा को देख और समझ रहे हैं। सरकार और नकल माफिया तो इस नैक्सस के खेल का खुलासा हो यह सरकार को कतई भी बर्दाश्त नहीं है। इसलिए अब इस मुद्दे पर होने वाली तकरार और टकराव का थमना भी संभव नहीं है। विपक्ष जो बीते समय की हताशा और निराशाजनक स्थिति से उबर चुका है पीठ के अब उस रवैये को भी कतई भी बर्दाश्त नहीं करने वाला है जो वह बीते 10 सालों से करता आया है। यही कारण है कि विपक्षी दलों के तमाम नेताओं ने स्पीकर ओम बिरला से मिलकर सीधे सवाल और जवाब किए। विपक्ष की आवाज को अगर माइक बंद कर दबाने का प्रयास किया जा रहा है तो इससे स्पीकर और भाजपा दोनों की छवि धूमिल हो रही है यह बात सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेताओं को समझने की जरूरत है। इस तरह की कोशिशों से स्थितियां सुधारने की बजाय और अधिक खराब होगी। और पूरा फायदा विपक्ष को ही होगा। सत्तारूढ़ दल के इस नकारात्मक रवैये के पीछे दो ही कारण हो सकते हैं या तो वह चाहता है कि किसी भी तरह दो—चार महीने का समय खिंच जाएं और इस बीच जोड़—तोड़ के जरिए भाजपा 272 का अंक जूटा ले या फिर विपक्ष के सर असहयोग और तोड़फोड़ का आरोप मढ़कर सत्ता से बाहर हो जाए? सत्ता पक्ष को इस बात का बखूबी एहसास हो चुका है कि विपक्ष आने वाले पांच सालों में एक भी दिन चैन की सांस नहीं लेने देगा और अगर संसद में स्पीकर की आड़ लेकर सांसदों के सामूहिक निलंबन जैसे कार्यवाहियों तथा मनमाने तरीके से कानून को पारित करने की पुनरावृति की गई तो उसके क्या परिणाम होंगे 2024 के चुनाव परिणाम से भाजपा को इस बात का भी एहसास बखूबी हो चुका है की हवा कितनी बदल चुकी है और हवा का रुख क्या है। पेपर लीक के जिस अति संवेदनशील मुद्दे को लेकर सड़कों से संसद तक महासंग्राम की स्थिति बनी हुई है वह मुद्दा देश के युवा पीढ़ी से जुड़ा हुआ है। विपक्ष संसद में जिनकी पैरवी कर रहा है उसके साथ इन युवाओं की संवेदनाओं का जुड़ना स्वाभाविक है। लेकिन विपक्ष की सोच सकारात्मक है इसलिए सरकार को इस मुद्दे पर सकारात्मक सोच के साथ ही सामने आने की जरूरत है।

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