अभिभाषण के मायने

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नई सरकार के राजकाज संभालने के बाद संसद के संयुक्त सत्र को राष्ट्रपति के जिस अभिभाषण से शुरू करने की एक परंपरा है वह अभिभाषण क्या होता है इसके बारे में हम सभी भली भांति जानते हैं। राष्ट्रपति का यह अभिभाषण विशुद्ध रूप से एक सरकारी दस्तावेज होता है इसमें राष्ट्रपति का अपना कुछ नहीं होता है सरकार द्वारा जो लिखवा दिया गया होता है उसे राष्ट्रपति द्वारा सिर्फ पढ़ा भर जाता है। लेकिन इस सबके बीच भी इस अभिभाषण में सरकार की उपलब्धियाें के अलावा सरकार की भावी नीतियों और सोच की झलक जरूर होती है जिससे सरकार की मंशा को समझा जा सकता है कि वह क्या कुछ करना चाहती है और क्यों करना चाहती है। सरकार सालों से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती के साथ आगे बढ़ाने के दावे कर रही है वही दावे अपने अभिभाषण में राष्ट्रपति द्वारा भी किए गए हैं। सरकार द्वारा अपने पिछले 10 साल के कार्यकाल में देश के 25 करोड लोगों को गरीबी की रेखा से ऊपर लाने की बात का उल्लेख किया जाता रहा है जो इस अभिभाषण में सुनने को मिला। सरकार द्वारा गरीब और कमजोर लोगों के उत्थान के लिए तमाम सारी योजनाएं चलाई जा रही है। 2024 के चुनाव में पेपर लीक और बेरोजगारी के जो मुद्दे प्रमुखता के साथ उठे उन्हें लेकर अब अगर सरकार चिंता जता रही है या फिर इन्हें रोकने के पुख्ता इंतजाम करने का वायदा किया जा रहा है तो यह अच्छी बात है। तमाम प्रतियोगी परीक्षाओं में होने वाली धांधली के कारण देश के प्रतिभाशाली युवाओं को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। राष्ट्रपति द्वारा सैन्य बलों और सुरक्षा बलों को और अधिक सशक्त बनाने का भरोसा भी अपने अभिभाषण में जताया गया है। सवाल यह है कि विगत सरकार द्वारा जो अग्निवीर योजना लाई गई थी क्या सरकार उसे पर भी पुनर्विचार करेगी विपक्ष द्वारा इस योजना को लेकर भारी आपत्ति जताई जाती रही है तथा इसे सैन्य बलों को कमजोर बनाने वाली योजना बताया जाता रहा है। राष्ट्रपति ने अपने अभीभाषण में संसद में होने वाले हंगामे और उससे लोकहित प्रभावित होने का मुद्दा भी उठाया गया है लेकिन इसके लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहराया जाना क्या उचित है पूर्ववर्ती सरकार में जिस तरह से विपक्ष की आवाज को दबाने और सांसदों के थोक के भाव किए जाने वाले निलंबन क्या एक स्वस्थ संसदीय परंपरा के प्रतीक कहे जा सकते हैं। सरकार को जो कुछ करना है करें लेकिन इस 18वीं लोकसभा के पहले सत्र का आगाज जिस सहयोग व सांमजस्य की भावना से करने की बात कही जा रही है वह सिर्फ कहने भर के लिए ही दिखाई दे रही है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के बाद अब राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू द्वारा 50 साल पहले देश में लागू किए गए आपातकाल का जिक्र भर कर कांग्रेस पर हमला किया गया। क्या इस दौर में जब आप एक नई शुरुआत कर रहे हैं क्या इन गड़े मुर्दों को उखाड़े बिना किया जाना संभव नहीं था। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों द्वारा इतिहास को क्यों दोहराया जा रहा है इसे हर कोई जान समझ रहा है ऐसी स्थिति में विपक्ष की आस्तीने चढ़ना भी स्वाभाविक है क्योंकि अब विपक्ष 2014 और 2019 की तरह कमजोर विपक्ष नहीं है अच्छा होता कि तनातनी की बजाय पक्ष—विपक्ष लोकहित व लोकतंत्र की मजबूती की सोच रखते।

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