राजनीति की बदलती तस्वीर

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कल देश के संसद भवन से जो तस्वीर सामने आई वह देश की भावी राजनीति के भविष्य को बताने के लिए काफी थी। 4 जून से पहले किसी ने भी यह सोचा नहीं होगा कि पीएम नरेंद्र मोदी जो चुनावी दौर में राहुल गांधी के बारे में अपने एक इंटरव्यू में कहते हैं कि कौन राहुल गांधी? वह 26 जून को संसद भवन में राहुल गांधी से हाथ मिलाते दिखेंगे। और जब स्पीकर ओम बिरला राहुल गांधी से हाथ मिला रहे होंगे तो पीएम मोदी बगल में खड़े होकर उनका चेहरा देख रहे होंगे। भले ही कुछ लोगों को इंडिया ब्लॉक का यह फैसला अच्छा न लगा हो लेकिन उसने स्पीकर पद के लिए अपना प्रत्याशी उतार कर एनडीए को यह याद करने पर विवश तो कर ही दिया गया कि सरकार को भी विपक्ष के सकारात्मक सहयोग की जरूरत होती है। प्रधानमंत्री की अपील और रक्षा मंत्री का कांग्रेस अध्यक्ष से संपर्क साधना क्यों जरूरी हो गया इस बात को कांग्रेस भी जानती है कि उसके पास संख्या बल नहीं है और सत्ता पक्ष का ही स्पीकर बनना तय है। और मत विभाजन न कर कांग्रेस ने निर्विरोध ध्वनि मत से स्पीकर का चुनाव करा कर भी सत्ता पक्ष को बैक फुट पर रहने पर विवश कर दिया। तस्वीर बहुत कुछ बोलती है। स्पीकर की कुर्सी संभालने के बाद भले ही ओम बिरला चेहरे पर मुस्कान लिए राहुल गांधी और अखिलेश यादव के बधाई भाषण सुन रहे थे लेकिन इन नेताओं ने अंग्रेजी और हिंदी में लोकतंत्र, संविधान तथा स्पीकर और संसदीय गरिमा का जो पाठ पढ़ाया गया उसकी उन्होंने सपने में भी उम्मीद नहीं की होगी। नेता विपक्ष राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने जिस अंदाज में सदन में अपनी बात कही उसमें उनके द्वारा संसदीय मर्यादाओं का जिस तरह ध्यान रखा गया उसे देखकर भी लोग हैरान जरूर दिखे लेकिन यही देश की बदलती राजनीति की असल तस्वीर है। 2024 के इस चुनाव ने इस इस देश की राजनीति में एक बड़े बदलाव की शुरुआत की है। विपक्ष इस बदलाव के लिए बीते कई सालों से संघर्ष कर रहा था। सत्ता को संविधान और लोकतंत्र के अनुकूल बनाने की इस लड़ाई में वह काफी हद तक सफल हो चुका है लेकिन अभी भी यह सवाल, सवाल ही बना हुआ है कि क्या सत्ता पक्ष भी इस सकारात्मक बदलाव के लिए सहज रूप से तैयार हो सकेगा भले ही इस सवाल का जवाब अभी भविष्य के गर्भ में छिपा हो लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने जिस तरह से निरंकुशता के साथ पिछले 10 साल राज काज चलाया उसे देखते हुए उनसे इस तरह की अपेक्षा बहुत कम ही है। लेकिन एक बात जरूर साफ है कि इस बार सामने बैठा विपक्ष जो अब तक मजबूती के साथ एकजुट दिख रहा है एक जुट बना रहता है तो देर—सवेर सत्ता पक्ष को सीधे रास्ते पर आना ही पड़ेगा और अगर भाजपा जोड़—तोड़ कर खुद को 272 के अंक तक पहुंचाने में सफल हो जाती है तो फिर उन्हें 2014 व 2019 की तरह मनमानी करने से कोई नहीं रोक पाएगा लेकिन यह भाजपा के लिए बहुत आसान काम भी नहीं होगा शायद इसकी एक वजह वह बदलाव का दौर भी है जिसकी शुरुआत 2024 के इस चुनाव से हो चुकी है। भाजपा के सहयोगी भी कितने भरोसेमंद है यह भी सभी जानते हैं। इसलिए जोखिम तो दोनों तरफ बराबर ही है।

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