चुनाव परिणामों का इंतजार

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आज लोकसभा की 57 सीटों के लिए अंतिम चरण का मतदान हो रहा है। जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सीट भी शामिल है। वर्तमान चुनाव के बारे में एक बात स्पष्ठ रूप से कही जा सकती है कि 2024 का यह चुनाव लहर विहीन चुनाव रहा है। हालांकि शुरूआती दौर में जब अयोध्या में राम मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा का भव्य और दिव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया था तब एकबारगी यह जरूर लगा था कि भाजपा फिर राम मन्दिर के मुद्दे पर सवार हो चुकी है। चारों ओर यह अनुगूंज सुनाई दे रही थी कि ट्टजो राम को लाये है हम उनको लायेेगें’ लेकिन चुनाव के आने तक मध्यम और मध्यम होता चला गया और फिर एक बार मोदी सरकार, अबकी बार 400 पार पर आकर टिक गया। पिछले दस वर्षो में भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम को मोदी है तो मुमकिन है के नारे के जरिए जिस तरह से अपनी जीत की गांरटी बना दिया था वह मोदी के नाम का मैजिक भी इस चुनाव में कहीं से कहीं तक नजर नहीं आया। सत्तर के दशक में इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा की तरह मोदी है तो मुमकिन है का नारा भी धराशाही हो गया। धारा 370 को जम्मू कश्मीर से समाप्त करने और पुलवामा जैसे आंतकी हमले और सर्जिकल स्ट्राइक जैसी भी कोई घटना इस चुनाव को प्रभावित करने वाली नहीं रही। ऐसी स्थिति में भाजपा व केन्द्र सरकार के पास सिर्फ अपनी लाभार्थियों योजनाओं के सहारे के अलावा ज्यादा कुछ बताने या कहने सुनने को शेष नहीं बचा रह गया था। केन्द्र सरकार द्वारा गरीब ओर सामाजिक कल्याण के लिए चलाई जाने वाली तमाम लाभार्थी योजनाओं के सापेक्ष कांग्रेस और इंडिया गठबन्धन ने अपने न्याय पत्र में और अधिक लम्बी लकीरें खींची जाने के बाद 2024 का यह लोकसभा चुनाव जो प्रारम्भिक दौर से अत्यन्त आसान दिख रहा था वह हर चरण के आगे बढ़ने के साथ भाजपा और एनडीए के लिए चुनौतीपूर्ण दिखायी देने लगा। अब जब चुनाव आज अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है और 4 जून को परिणाम आने वाला है तमाम राजनीतिक समीक्षक व विशेषज्ञ इस चुनाव को लेकर कोई ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहे है। दोनो पक्षों के कट्टर समर्थक भले ही अपनी—अपनी जीत के दावे क्यों न कर रहे हो लेकिन उनके मन मेें तमाम तरह की आशंकाए व संभावनाए चुनावी नतीजों को लेकर मौजूद है। 10 साल की एंटी इनकम्बैसी और तमाम अंर्तविरोधों के कारण भाजपा के नेता भी कुछ नहीं कह पा रहे है। भाजपा के पास इस चुनाव में सही मायने में कोई मुद्दा ऐसा रहा ही नहीं जिसे वह शुरू से लेकर अंत तक पकड़े रख सकती। जबकि विपक्ष सरकार पर तानाशाही के आरोपो के साथ बढ़ती मंहगाई और बेरोजगारी तथा भ्रष्टाचार के साथ किसानो के एमएसपी और महिलाओं की आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा के मुद्दों को लेकर अंत तक आम जनता तक पहुंचने की कोशिशों में जुटी रही। जिन स्थितियों और परिस्थितियों के बीच यह पूरा चुनाव सम्पन्न हुआ है उसे देखकर अब यह भी कहा जा रहा है कि जनता का फैसला चौंकाने वाला रहने वाला है। वहीं कुछ लोगों द्वारा इस बात की संभावनाए भी जताई जा रही है कि इस बार किसी दल को पूर्ण बहुमत मिलना भी मुश्किल हो जाये। परिणाम क्या रहने वाला है यह तो अब 4 जून को परिणाम आने के बाद ही साफ हो सकेगा लेकिन अब सभी की निगाहें इन चुनाव परिणामों पर ही लगी हुई है। सिर्फ राजनीतिक दल ही नहीं अपितु देश के आम लोग भी इस अद्भुत चुनाव का परिणाम जानने को अति उत्सुक है। क्योंकि यह चुनाव आम जनता का चुनाव कहा जा रहा है।

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