व्यवस्थाओं में बड़े बदलाव की जरूरत

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चारधाम यात्रा उत्तराखंड राज्य की अगर लाइफ लाइन बन चुकी है तो इस लाइफ लाइन को सुरक्षित और मजबूत बनाए जाने के प्रयास भी सरकारी स्तर पर किया जाना जरूरी है लेकिन यह विडम्बना ही है कि अब तक इस दिशा में किसी भी सरकार द्वारा सही समय पर कोई ठोस और प्रभावशाली प्रयास नहीं किए गए हैं। केंद्र सरकार द्वारा चार धाम ऑल वेदर रोड निर्माण से लेकर धामों के पुनर्निर्माण तक जितने भी काम किए गए हैं तथा राज्य में कनेक्टिविटी बढ़ाने के प्रयास किए गए हैं अगर उसका दसवां हिस्सा भी राज्य सरकारों ने यात्रा के प्रबंधन तंत्र को विकसित करने पर ध्यान दिया गया होता तो आज ऐसे हालात पैदा नहीं होते कि भीड़ प्रबंधन के लिए भी केंद्र सरकार के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता। राज्य की सरकारे चार धाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करती रही हैं तथा स्थानीय लोगों व व्यवसायियों तथा उससे होने वाली कमाई को देखकर खुश होती रही है। हर साल चार धाम यात्रा की तैयारी के नाम पर की जाने वाली खानापूर्ति के बारे में हम सभी अच्छे से वाकिफ है। शासन प्रशासन में लोगों ने कभी इस बात पर गंभीरता से सोचने की जरूरत ही नहीं समझी कि यात्रा सुविधाओं को किस तरह अधिक से अधिक बेहतर बनाया जा सकता है। हर साल सुगम और सुरक्षित यात्रा का नारा देकर ही यह सोच लिया जाता है कि बस हो गया सब कुछ ठीक। अभी यात्रा शुरू होने के बाद भी यात्रा मार्गों पर मरम्मत और निर्माण कार्य जारी होने के कारण यात्रियों को 6—6 घंटे रोके जाने की खबर आई थी हरिद्वार में ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन सेंटर बदलने और फिर रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को पूरी तरह बंद किया जाना इस बात का प्रमाण है कि सरकार ने सुगम और सुरक्षित यात्रा की कितनी बेहतरीन तैयारी की है। त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में देवस्थानम बोर्ड के गठन का प्रस्ताव लाया गया तो तीर्थ पुरोहितों से लेकर चारों धामों के पंडा पुजारी विरोध में खड़े हो गए। उन्हें हमेशा ही इस बात का डर सताता रहता है कि कहीं उनकी कमाई का जरिया न छिन जाए? उन्हें पुरानी व्यवस्था में किसी भी तरह का रत्ती भर भी बदलाव गवारा नहीं है। अधिक से अधिक लोग हर रोज आए और उनकी कमाई दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती रहे यात्रियों को जो भी दिक्कतें हो उन्हें उससे कोई सरोकार नहीं है और न ही इस बात से कुछ लेना—देना है कि चार धाम यात्रा के कुप्रबंधन के कारण राज्य की छवि कितनी धूमिल हो रही है। समय के साथ व्यवस्थाओं को बदला जाना जरूरी है। सरकार अब यात्रा प्रबंधन के लिए अलग से एक प्राधिकरण गठन पर भी मंथन कर रही है। निश्चित रूप से यह काम 10 साल पहले किए जाने की जरूरत थी। शासन—प्रशासन पर किसी बदलाव के खिलाफ दबाव बनाने वाले लोगों के साथ सख्ती से निपटने की जरूरत है। एनडीआरएफ और आईटीबीपी भीड़ नियंत्रण में क्या कुछ कर पायगी यह आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इस समस्या से निजात पाना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए राज्य सरकार को वैष्णो देवी के श्राइन बोर्ड जैसे प्रबंधन तंत्रों की समीक्षा करने की जरूरत है देश में अनेक ऐसे तीर्थ और धाम है जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं लेकिन उन्हें इस तरह की अव्यवस्थाओं का सामना नहीं करना पड़ता है। उत्तराखंड राज्य जो अब धीरे—धीरे धार्मिक पर्यटन, योग तथा अध्यात्म की राजधानी बनता जा रहा है। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए बड़े बदलाव करने और फैसले लेने की जरूरत है। अब वह समय बीत चुका है जब दाल—भात और चाय—पकौड़े पर राज्य का पर्यटन चलता था ढांचागत सुधारो के साथ व्यवस्थाओं में बड़े बदलाव करके ही चार धाम यात्रा को सुगम व सुरक्षित बनाया जा सकता है। सत्ता में बैठे लोगों को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

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