सत्ता की बढ़ती बेचैनी

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बेंगलुरु मेट्रो स्टेशन पर एक किसान को मेट्रो ट्रेन में यात्रा करने से रोके जाने की घटना भारतीय संविधान और उसमें की गई व्यवस्थाओं की आत्मा पर ऐसा कुठाराघात है जो हमें यह सोचने पर विवश करता है कि क्या हम 130 साल पूर्व के उस युग में लौट गए हैं जब दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव के कारण महात्मा गांधी को ट्रेन से नीचे उतार दिया गया था। खास बात यह है कि अभी 7 दिसंबर 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने दक्षिण अफ्रीका में इस ट्रेन में सफर करते हुए इतिहास के उन काले पन्नों को पलटा था और मीडिया में आई तस्वीरों के जरिए खूब वाह वाही लूटी थी लेकिन अब उनके ही राज में उनके ही देश में भेदभाव और नफरत की रेखाएं इतनी गहरी हो गई है कि मेट्रो में यात्रा के लिए कपड़ों का स्तर देखा जा रहा है। राहुल गांधी जो इन दिनों सामाजिक न्याय यात्रा के दौरान मोदी सरकार पर देश में नफरत फैलाने का जो आरोप लगा रहे हैं यह घटना इस बात का प्रमाण है कि उनके आरोप बहुत हद तक ठीक हैं वह यूं ही प्रेम की दुकान चलाने की राह पर नहीं निकल पड़े हैं। बात आरक्षण की हो या फिर मंदिर और मस्जिद की, किसानों की हो या मजदूरों की, महिलाओं के सशक्तिकरण की हो या फिर युवाओं के रोजगार की, सभी मुद्दे किसी न किसी बिंदु पर सामाजिक भेदभाव के जरिए राजनीति करने पर ही जाकर टिकते दिखाई दे रहे हैं। कल सुप्रीम कोर्ट द्वारा तटरक्षक बल में महिलाओं को स्थाई कमीशन न देने के मुद्दे पर जिस तरह केंद्र सरकार को नसीहत दी गई है कि वह इस मामले में भी नारी शक्ति और नारी वंदन का परिचय दे जैसा कि कहा और दिखाया जाता है। साथ ही कहा कि अगर सरकार स्थाई कमीशन नहीं देगी तो हमें देना पड़ेगा। कोर्ट की यह टिप्पणी केंद्र की सरकार की नीतियों पर बड़ा प्रहार है। चुनावी दौर में अग्नि वीर के जरिए सेना भर्ती के मामले में सरकार बैकफुट पर है। वहीं किसानो की आय दो गुना करने का दावा फुस्स हो चुका है। किसानों ने कल तमाम राजमार्गों को 3 घंटे बाधित कर सरकार को कह दिया है कि ड्रामा बहुत हो चुका उसे एमएसपी पर फैसला करना ही होगा। लोकसभा चुनाव से पूर्व ही अपनी जीत और अबकी बार 400 पार का दावा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा तथा उनका गुणगान करने वाली गोदी मीडिया को अब यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिर अधिसूचना जारी होने से ऐन पूर्व यह क्या कुछ हो रहा है। लेकिन यह सब अकारण नहीं है। चाहे सुप्रीम कोर्ट के फैसले हो या युवा बेरोजगारों और किसानों का आंदोलन, जो मोदी सरकार और भाजपा पर भारी पड़ रहे हैं। इसके मूल में भाजपा सरकार की नीतियों और पार्टी की सोच ही है जिसका सच अब लोगों के सामने आने लगा है और उन्हें समझ आ रहा है। अगर जनता सरकार की नीतियों व रीतियों से परेशान है तो सत्ता में बैठे लोग भला कैसे चैन से सो सकते हैं।

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