बिना रणनीति के कोई भी लड़ाई नहीं जीती जा सकती। युद्ध का मैदान हो या राजनीति का अखाड़ा, अगर रणनीतिक कौशल और साहस नहीं है तो आपकी हार भी सुनिश्चित है। पांच राज्यों में अभी संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने मुख्यमंत्री के चेहरों की घोषणा नहीं की थी। जबकि उसके पास एक से बढ़कर एक अनुभवी नेताओं की फौज मौजूद थी। मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित न किए जाने को लेकर क्या कारण था उस वक्त सिर्फ नेता कयास ही लगा सकते थे लेकिन अब जब राजस्थान मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सभी उन तीन राज्यों में जहां भाजपा को जीत मिली है सत्ता का ताज किस—किस के सर सजेगा तय होने के बाद भाजपा के नेताओं को समझ आ सका है कि चुनाव पूर्व सीएम के चेहरे घोषित क्यों नहीं किए गए। इसके पीछे भाजपा की सोच सिर्फ पार्टी की आंतरिक कलह को दमित करना ही नहीं था बल्कि एक बड़े राजनीतिक बदलाव का संदेश देना और 2024 के लोकसभा चुनावों की रणनीतिक तैयारी का मजबूत आधार प्रदान करना था। राजस्थान में भाजपा ने पहली बार चुनाव जीतने वाले भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी कार्यकर्ताओं को यह बता दिया है कि राजनीति में सब कुछ संभव है एक छोटा सा कार्यकर्ता भी मुख्यमंत्री बन सकता है। स्वाभाविक तौर पर इस बड़े फैसले से पार्टी के कार्यकर्ताओं का मनोबल बड़ा होगा। देश की राजनीति में आमतौर पर जो चंद पुराने नेता सत्ता पर अपना वर्चस्व बनाए रखने के आदी हो चुके हैं अगर उन्हें पार्टी कभी बदलने की कोशिश भी करती है तो वह बगावत पर उतर आते हैं तथा पार्टी को तोड़ने में नहीं हिचकते। राजस्थान में भी बीते 25 सालों से यही होता चला आ रहा है एक बार अशोक गहलोत तो दूसरी बार वसुंधरा राजे सिंधिया। लेकिन इस बार वसुंधरा राजे सिंधिया की जगह पहली बार चुनाव जीतकर विधायक बने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने इस परंपरा को तोड़ डाला है। पिछली बार कांग्रेस ने भी कोशिश की थी लेकिन गहलोत की हटधर्मिता के आगे उसे घुटने टेकने पड़े थे भाजपा ने सामाजिक संतुलन साधने के लिए यूपी वाले फार्मूले पर हर राज्य में इस बार दो—दो उपमुख्यमंत्री भी बनाए हैं। यही प्रयोग भाजपा ने छत्तीसगढ़ में भी किया है जहां पहली बार एक आदिवासी विष्णु देव साय को सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया है भाजपा को पता है कि छत्तीसगढ़ में 32 फीसदी आबादी आदिवासी है। मध्य प्रदेश में उलट—पुलट कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहने वाले शिवराज सिंह चौहान भी वसुंधरा राजे की तरह खुद को सीएम बनाने की उम्मीद लगाए बैठे थे लेकिन भाजपा ने उनके दीर्घकालिक शासन का अंत करते हुए मोहन यादव को सीएम की कुर्सी पर बैठा दिया है। भाजपा ने इस बड़े राजनीतिक प्रयोग को यूं ही नहीं किया इसका एक बड़ा संदेश यह भी है कि कोई भी बड़ा नेता यह भ्रम में न रहे कि उसके लिए कुर्सी रिजर्व है। वही नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने का काम सिर्फ भाजपा ही कर सकती है। यह बताने की कोशिश भी भाजपा ने अपने इन फैसलों के माध्यम से की है। 2024 के चुनाव के लिए भाजपा ने 18 से 35 आयु वर्ग के उन युवाओं को आकर्षित करने का कार्यक्रम भी तैयार किया है जो भाजपा के वोटर नहीं है लेकिन मोदी की नीतियों के मुरीद है। अपने युवा सम्मेलनों के जरिए भाजपा उन्हें अपने करीब लाने की रणनीति पर काम कर रही है। तथा इस रणनीति को प्रभावी बनाने की दृष्टिकोण से उसने राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में सीएम के चेहरे बदले हैं। जो काफी जोखिम पूर्ण है लेकिन यह पूर्व मुख्यमंत्री भी अच्छी तरह जानते हैं कि इन राज्यों में जो जीत मिली है वह पीएम मोदी के चेहरे पर ही मिली है इसलिए उनके विरुद्ध जाने का मतलब अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी मारना होगा। देखना होगा कि इस नई रणनीति का भाजपा को 2024 के चुनाव में कितना फायदा हो पाता है।