समाज के स्वामी, स्वामी नाथन

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हरित क्रांति के जनक और भारत को खाघान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने वाले स्वामी नाथन अब हमारे बीच नहीं रहे। यह खबर हर उस भारतीय को झकझोरने वाली है जिसने भी जिन्दगी की भूख देखी है। भले ही अब देश खाघान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर देश बन गया हो लेकिन आजादी से पूर्व व आजादी के बाद कई दशकों तक इस देश के लोगों ने गरीबी, भुखमरी और अकाल जैसी स्थितियंा देखी है। जब अन्न के दाने—दाने के लिए अथक श्रम करना पड़ता था। भले ही तब देश की आबादी वर्तमान की तुलना में एक तिहाई से भी कम क्यों न रही हो लेकिन खाघान्न पैदावार आज की तुलना में 10वां हिस्सा भी नहीं थी। तब किसानों को खासकर छोटे किसानों को तो अपनी और परिवार की उदरपूर्ति लायक अन्न पैदा करना मुश्किल होता था 1943 में बंगाल में पड़े भीषण अकाल के कारण लाखों लोगों की मौत ने स्वामीनाथन को इस समस्या के समाधान के लिए प्रेरित न किया होता तो आज भारत अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने का गौरव प्राप्त नहीं कर सकता था। उनके समर्पण और लगन तथा मेहनत ने देश को खाघान्न उत्पादन में उन ऊचांईयों पर पहुंचा दिया कि आज उनके निधन पर दिये शोक समाचार में उनकी पुत्री ने कहा कि उन्होने अपनी अंतिम संास पूर्ण शंाति के साथ ली। निःसंदेह जब कोई जीवन अपने चरम उद्देश्य तथा कर्तव्यों को पूरा करने में सफल हो जाता है तभी उसे पूर्ण शांति के साथ अंतिम सांस लेने का अवसर ईश्वर उसे प्रदान करता है। मानव समाज के कल्याण के लिए जो कार्य किये जाते है उनका कोई मोल नहीं हो सकता है। जन कल्याण और समाज तथा राष्ट्र हित की बड़ी—बड़ी बातें करना बहुत आसान काम है। लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ कर दिखाना बहुत मुश्किल होता है। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज बड़े गर्व से आत्मनिर्भर भारत की बात करते है अनेक बार देश के लोगों ने उनके भाषणों में किसानों की आय दो गुना करने की भविष्यवाणी सुनी है। लेकिन इसके विपरीत जमीनी स्थिति यह है कि देश में हर रोज आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे अन्नदाताओं द्वारा आत्महत्याएं की जा रही है। भले ही यह देश की आजादी के अमृतकाल का दौर सही और स्वामीनाथन के उस दौर की तुलना में जब किसानों के पास न तो सिंचाई के पर्याप्त साधन थे और कृषि के यंत्र संयत्रों का भारी अभाव था लेकिन उनकी दिशा दशा में आशातीत सुधार आया था वही किसान आज के दौर में सब कुछ साधन सम्पन्न होने के बावजूद विपन्नता की अंधेरी खाई की ओर बढ़ता जा रहा है। खाघान्न में आत्मनिर्भरता के बाद भी देश में अगर गरीबी है और लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पा रहा है तो इसका कोई तो कारण होगा? आज विश्व में 1.25 अरब लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीने पर विवश है वहीं भारत की एक चौथाई आबादी अपनी रोटी—कपड़ा मकान जैसी मूल जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा है तो यह यूं ही नहीं है। कहीं न कहीं सरकार की नीतियों की खामियंा ही इसके लिए जिम्मेवार है। बीते पांच दशक भारतीय कृषि क्षेत्र में उत्पादन की दृष्टि से अत्यन्त ही स्वर्णिम रहे है। इन दशकों में स्वामी नाथन जैसी विभूतियों के प्रयासों से भारत ने अन्न उत्पादन में रिकार्ड बनाये है। लेकिन देश का दुर्भाग्य देखियें कि हर साल करोड़ों क्विंटल अनाज खुले आसमान के नीचे रहने या गोदामों की उचित व्यवस्था के अभाव में खराब हो जाता है और गरीबों का चूल्हा नहीं जल पाता उन्हे भूखे पेट या अधपेट भोजन के साथ ही सोना पड़ता है। देश की जनता को आज भी सरकार द्वारा दिये जाने वाले मुफ्त के राशन पर क्यों निर्भरता बनी हुई है? स्वामीनाथन की अंतिम विदाई पर यह सवाल सरकार से जरूर पूछा जाना चाहिए कि वह कैसा आत्मनिर्भर देश बना रहे है।

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