पीएम का राष्ट्रीय संबोधन

0
326


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 10वीं बार लाल किले के प्राचीर पर ध्वजारोहण करने के बाद देश को संबोधित किया। उनका यह संबोधन अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है ठीक वैसे ही जैसे पूर्ववर्ती तमाम प्रधानमंत्रियों के राष्ट्रीय संबोधन दर्ज है उनसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी 17—17 बार इस लाल किले की प्राचीर पर ध्वजारोहण कर चुके हैं तथा मनमोहन सिंह भी 10 बार राष्ट्र को संबोधित कर चुके हैं। भले ही प्रधानमंत्री मोदी ने दसवीं बार लाल किले से झंडा फहराने और राष्ट्र को संबोधित करने का कोई नया रिकॉर्ड न बनाया हो लेकिन इससे पहले किसी भी प्रधानमंत्री ने न तो अपने राष्ट्रीय संबोधन में इस तरह का राजनीतिक भाषण दिया है और न अगली बार भी ध्वजारोहण और देश को संबोधित करने का दावा किया गया है जैसा कि नरेंद्र मोदी ने किया है। उनके इस राष्ट्रीय संबोधन को किसी चुनावी भाषण की तरह ही देखा जा रहा है जो स्वाभाविक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाल किले से अपने राष्ट्रीय संबोधन में देशवासियों का आशीर्वाद मांगे जाने और विपक्षी दलों तथा गठबंधन पर भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टीकरण की राजनीति का आरोप लगाकर उन पर हमला किया गया वह किसी प्रधानमंत्री का राष्ट्रीय संबोधन नहीं हो सकता है। जिस समय प्रधानमंत्री इन मुद्दों पर विपक्ष पर अति आक्रमक श्ौली में वार पर वार कर रहे थे तब अग्रिम पंक्ति में बैठे गृहमंत्री और रक्षा मंत्री उनके संबोधन पर खूब तालियां बजा रहे थे ऐसा लग रहा था मानो वह किसी चुनावी सभा में बैठे हैं या संसद मेंं होने वाली चर्चा में बैठे हों और मोदी के भाषण पर मेज थपथपा कर उनका उत्साहवर्धन कर रहे हो। देश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले साल स्वतंत्रता दिवस पर संबोधित करेंगे इसका फैसला देश की जनता को करना है, भाजपा नेताओं को नहीं। अगर जनता उन्हें आशीर्वाद देती है तो जरूर वही फिर देश को संबोधित करेंगे और अगर जनता नहीं चाहेगी तो क्या वह जबरदस्ती लाल किले की प्राचीर पर चढ़ जाएंगे? विपक्ष ने उनके इस भाषण को कंडम करते हुए कहा है कि अगर ऐसी बात है और उन्हें ही झंडा फहराना है तो फिर देश में चुनाव कराने की भी क्या जरूरत है। प्रधानमंत्री के इस भाषण में आत्मविश्वास कम अहंकार ज्यादा झलक रहा था। इतिहास गवाह है कि इस देश की जनता को किसी भी राष्ट्रीय अध्यक्ष का इस तरह का अहंकार कतई भी गवारा नहीं है। 70 के दशक में ऐसा ही अहंकार कांग्रेस के अंदर भी देखा गया था जब देश में इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा का नारा गूंज रहा था। चुनाव में देश की इसी जनता ने कांग्रेस को औंधे मुंह पटक दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की सत्ता संभालते हुए 10 साल होने वाले हैं। देश के जिन लोगों को वह देश को विकसित भारत और आत्मनिर्भर भारत बनाने का वायदा लाल किले से कर रहे हैं वह देशवासी जो अब उनसे पूछना चाहते हैं कि 10 साल में उन्होंने कितना भ्रष्टाचार मिटा दिया है 100 दिन में काला धन वापस लाकर कितने लोगों की गरीबी दूर कर दी है। उनकी अपनी पार्टी में कितने परिवार वादी मंत्री बने बैठे हैं कितने लोगों के अच्छे दिन आ गए हैं? अगर देशवासी उनके परिजन है तो मणिपुर की शर्मनाक घटनाओं पर उन्होंने इतने दिन चुप्पी क्यों साधे रखी और क्यों उन्होने वहां जाकर एक बार भी पीड़ितों का हाल जानने की कोशिश नहीं की। प्रधानमंत्री मोदी जो कहते हैं वह कितना सच या झूठ है इसका फैसला अब जनता 2024 में स्वयं करेगी हां उनके कुछ भी कहने से अब कुछ नहीं होने वाला है होगा तो वही जो प्रभु राम चाहेंगे जिनके नाम के नारे उनके राष्ट्रीय संबोधन में गूंज रहे थे या फिर वह देश की जनता जिसे नेता अपनी भाषा में जनार्दन कहते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here