खुद को तलाश करती कांग्रेस

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देश की 137 साल पुरानी राजनीतिक पार्टी नेशनल कांग्रेस जिसने छह दशक तक देश की जनता पर एकछत्र राज किया वर्तमान दौर में खुद की तलाश में भटक रही है। कांग्रेस के नए और पुराने सभी नेता जो अभी भी कांग्रेस का हिस्सा है अपने स्वर्णिम दिनों को वापस लाने की उम्मीद लेकर चिंतन मंथन में जुटे हुए हैं। उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि इतनी तेजी से सब कुछ हवा हो गया। पुराने सभी साथी संगी यह कहकर साथ छोड़ कर चले गए कि कांग्रेस अब वह पहले वाली कांग्रेस नहीं रह गई है वहीं जो नए चेहरे हैं या थे वह यह सोचकर किनारा करते जा रहे हैं कि कांग्रेस में उनका कोई राजनीतिक भविष्य नहीं हो सकता है। अभी राजस्थान के जोधपुर में कांग्रेस ने अपने वर्तमान के इसी हालात पर चिंतन मंथन के लिए नव संकल्प शिविर का आयोजन किया लेकिन इसमें तमाम विमर्शो के बीच भी पार्टी के नेता अधोपतन के मूल कारणों से मुंह चुराते ही दिखे। अब कांग्रेसी नेता राज्य स्तर पर चिंतन शिविरों का आयोजन कर रहे हैं। प्रियंका गांधी लखनऊ में इस पर चर्चा कर रही है तो प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव और पूर्व सीएम हरीश रावत देहरादून में व्यस्त हैं। अभी उत्तराखंड में चंपावत विधानसभा सीट पर जो उपचुनाव हुआ है उसका परिणाम कल आएगा। लेकिन चुनाव परिणाम से दो दिन पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी ने क्या कहा है वह काबिले गौर है। सीएम धामी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाली गहतोड़ी कहती है कि यह चुनाव कांग्रेस ने नहीं उन्होंने अकेले ही लड़ा है। उनके पास या साथ अगर कांग्रेस का कुछ था तो वह सिर्फ सिंबल था, इसके अलावा कुछ नहीं था। पार्टी के उन तमाम नेताओं को उनका यह बयान बेनकाब करता है जो धामी के खिलाफ पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ने की बातें करते थे। मतदान वाले दिन कांग्रेस के पोलिंग एजेंट तक बूथों पर नहीं थे। उनका कहना है कि हरीश रावत ने जो जनसभा की थी उसका पूरा इंतजाम तक उन्हें खुद करना पड़ा था। अभी मार्च 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में हार के बाद यह मुद्दा चर्चाओं के केंद्र में रहा था कि पार्टी ने चुनाव खर्च के लिए जो पैसा भेजा था उसे कुछ नेताओं ने बंदरबांट कर लिया। क्या यही है आज की कांग्रेस और उसके नेता। सवाल यह है कि यह कांग्रेसी किस पर चिंतन मंथन कर रहे हैं और उनके नव संकल्पों के क्या मायने हैं सिर्फ बड़ी—बड़ी बातें कर लेने और कार्यक्रमों के आयोजनों से ही वह कांग्रेस का स्वर्णिम काल वापस लाने का सपना देख रहे हैं। जिस पार्टी के नेताओं के लिए राजनीति का मतलब एक दूसरे को नीचा दिखाना रह गया हो या उनके निजी स्वार्थ ही राजनीति बन गई हो उस पार्टी का कोई भला क्या कर सकता है। कांग्रेसी भाजपा और उसके नेताओं को अपने वर्तमान हालत के लिए जिम्मेवार मानते हैं और उन्हें पानी पी पीकर कोसते हैं उन्हें यह कभी क्या समझ आ सकेगा कि पार्टी की दुर्दशा के लिए वह खुद ही जिम्मेदार हैं।

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