जख्मों पर नमक

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भले ही रिजर्व बैंक द्वारा बीते कल जो रेपो रेट में .40 फीसदी की बढ़ोतरी का फैसला लिया गया है उसके पीछे बढ़ती महंगाई पर नियंत्रण की कोशिश बताया जा रहा हो लेकिन सच यह है कि इससे आम आदमी की आर्थिक परेशानियां और भी अधिक बढ़ने वाली हैं तथा कोरपोरेट क्षेत्र भी इससे हतोत्साहित होगा। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत का कहना है कि देश में बढ़ती मुद्रास्फीति और कच्चे तेल की कीमतों तथा यूक्रेन युद्ध के कारण बदली वैश्विक परिस्थितियों के कारण रेपो रेट को बढ़ाकर 4 से 4,40 प्रतिशत किया गया है। रेपो रेट के बढ़ने से बैंकों को अब बढ़ी हुई ब्याज दर पर पैसा मिलेगा इसका सीधा अर्थ है कि आम आदमी के लोन पर बैंकों द्वारा ब्याज बढ़ा दिया जाएगा और कर्ज की ईएमआई बढ़ जाएगी। केंद्रीय बैंक के इस फैसले का प्रभाव कहां—कहां पड़ेगा और कितना पड़ेगा इसे इससे भी समझा जा सकता है कि रेपो रेट में वृद्धि के बाद कल शेयर बाजार में भारी गिरावट देखी गई। कोरोना काल के बाद पटरी पर लौटती अर्थव्यवस्था को इससे झटका लगना तय है खासतौर से रियल स्टेट कारोबार पर इसका प्रभाव पड़ना तय है। रेपो रेट बढ़ने से जन कर्ज महंगा हो जाएगा तो फिर वह चाहे कार हो या घर सब के दाम बढ़ेंगे। आम लोग जब सस्ते घर नहीं खरीद पा रहे थे तो फिर महंगे घर कैसे खरीदेंगे। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल व गैस की कीमतें बढ़ने से पहले ही आम उपभोग की वस्तुओं की कीमतों में आग लगी पड़ी थी अब रही सही कमी रिजर्व बैंक ने कर्ज की ब्याज दर बढ़ाकर कर दी गई है। खास बात यह है कि 4 साल पूर्व केंद्रीय बैंक द्वारा रेपो रेट को घटाकर 4 फीसदी किया गया था जो कि सबसे निचले स्तर पर था 4 साल तक इसमें किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने अचानक बैठक कर रेपो रेट बढ़ा दिया गया। लोग अभी कोरोना के कारण आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं, बेरोजगारी बढ़ी है। खुदरा और थोक महंगाई दर में निरंतर वृद्धि जारी है आम आदमी मुश्किल दौर से गुजर रहा है ऐसे में अगर उसे मिलने वाला कर्ज भी महंगा हो जाएगा तो उसके लिए संकट और भी अधिक बढ़ना स्वाभाविक है। इसका प्रभाव सिर्फ आम आदमी और उघोग धंधों पर ही नहीं पड़ेगा बल्कि सरकार के वित्तीय अनुशासन पर भी पड़ेगा। 4 साल तक रिजर्व बैंक द्वारा दिखाई गई उदारता और आकस्मिक रेपो रेट में की गई यह वृद्धि किसी कारण से की गई सही, लेकिन सामाजिक जीवन पर इसका प्रभाव अच्छा पड़ने वाला नहीं है। रिजर्व बैंक के गर्वनर ने जो आशंका जताई है कि मुद्रास्फीति अभी और भी बढ़ सकती है सही हो सकती है लेकिन रेपो रेट बढ़ाकर क्या मुद्रास्फीति को बढ़ने से रोका जा सकेगा? इस सवाल पर अभी कोई जवाब नहीं है। फिलहाल यह रेपो रेट वृद्धि महंगाई की मार झेल रहे लोगों के जख्मों पर नमक डालने जैसा ही है।

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