भले ही केंद्र सरकार ने अति विनम्रता का प्रदर्शन करते हुए वह तीनों कृषि कानून वापस ले लिए हो जिन्हें लेकर एक साल तक किसान सड़कों पर डेरा डाले पड़े रहे और वह अब भले ही अपना आंदोलन स्थगित कर अपने घरों को लौट गए हो लेकिन किसान आंदोलन का भूत अभी भी सरकार के पीछे पड़ा हुआ है जो आसानी से सरकार का पीछा भी नहीं छोड़ने वाला है। इस किसान आंदोलन के दौरान लगभग 750 किसानों की जान चली गई जिन्हें मुआवजा दिलाने की मांग संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा की जा रही है वहीं किसान एमएसपी पर सरकार से गारंटी कानूनी मांग कर रहे हैं। किसानों की जिन मांगों को लेकर सरकार ने लिखित आश्वासन दिया है उसे पूरा किए जाने पर तो अब किसानों की नजरें टिकी हुई है इसके साथ ही तीन अक्टूबर को हुए खीरी लखीमपुर कांड की आग एक बार फिर सुलग उठी है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इस मामले को शांत करने के लिए जो प्रयास किए थे उस पर अब एसआईटी की रिपोर्ट ने पानी फेर दिया है। एसआईटी की जांच रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि लखीमपुर का एक सुनियोजित षड्यंत्र था कोई दुर्घटना नहीं थी। इरादतन आंदोलनकारियों पर गाड़ी चला कर उन्हें मारने का प्रयास किया गया। इस मामले में आरोपी मंत्री पुत्र आशीष मिश्रा जो जेल में है, पर कई और संगीन धाराएं बढ़ा दी गई है। वहीं विपक्ष जो लंबे समय से केंद्रीय राज्य मंत्री गृह अजय मिश्रा की गिरफ्तारी और बर्खास्तगी की मांग कर रहा था और अधिक मुखर हो गया है। संयुक्त किसान मोर्चा भी अब एसआईटी की जांच रिपोर्ट से भारी आक्रोश में है। उसने साफ कर दिया है कि उसने अपना आंदोलन स्थगित किया है लेकिन उसका मिशन उत्तर प्रदेश जारी रहेगा। किसानों के जिस मिशन उत्तर प्रदेश से डर कर केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस लिए वह मिशन उत्तर प्रदेश में अभी भी सरकार के सामने मुंह बाए खड़ा है। इससे यह साफ है कि तीनों कृषि कानून वापस लेकर सरकार जो यह सोच रही थी अब किसान आंदोलन खत्म हो जाएगा और उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में होने वाले चुनावों पर इसका कोई असर नहीं होगा वह उसकी गलत सोच होगी। एसआईटी उसी यूपी सरकार की बनाई हुई है जो अब तक मंत्री और मंत्री पुत्र को बचाने में जुटी रही है लेकिन अब एसआईटी की रिपोर्ट ने ही सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। रही सही कसर अब अजय मिश्रा ने बीते कल पत्रकारों के साथ गाली गलौज और अभद्र व्यवहार से पूरी कर दी है। अजय मिश्रा पर भड़के किसानों ने केंद्र सरकार को उन्हें बर्खास्त करने को 7 दिन का अल्टीमेटम दिया है। केंद्र सरकार अब अजय मिश्रा पर क्या निर्णय लेती है अलग बात है लेकिन अब उन्हें बर्खास्त करने का भी कोई फायदा भाजपा या उत्तर प्रदेश सरकार को होने वाला नहीं है। यह सभी जानते हैं कि पिता के केंद्रीय मंत्री रहते इस मामले में निष्पक्ष न्याय नहीं हो सकता है। अगर किसानों की नाराजगी, जो इन दिनों देखी जा रही है ऐसी ही बनी रही तो उत्तर प्रदेश में भाजपा को बड़ा चुनावी नुकसान उठाना पड़ सकता है।