निर्वाचन आयोग के सख्त दिशा निर्देशों के बावजूद भी तमाम राजनीतिक दलों और नेताओं द्वारा चुनाव आचार संहिता की जिस तरह से धज्जियां उड़ाई जा रही है वह कोविड के मद्देनजर चिंताजनक तो है ही, साथ ही अपने आप को जनसेवक बताने वाले नेताओं की संवेदनहीनता का भी प्रमाण है। चुनाव आयोग ने एक बार फिर से रैलियों,ं जनसभाओं और रोड शो जैसे कार्यक्रमों पर प्रतिबंध की अवधि 15 जनवरी से बढ़ाकर 22 जनवरी कर दी गई है जो एक स्वागत योग्य कदम है तथा यह दर्शाता है कि चुनाव आयोग समय से चुनाव कराने को लेकर जितना संजीदा है उतना ही गंभीर भी वह जन स्वास्थ्य को लेकर भी है। चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा के बाद जो नेता और राजनीतिक दल अपनी पार्टी कार्यक्रमों और चुनाव प्रचार के लिए भीड़ जुटा रहे है उन पर चुनाव आयोग पैनी नजर रखे हुए हैं। अब चुनाव आयोग ऐसी गतिविधियों के खिलाफ कड़े कदम भी उठा रहा है लेकिन नेता अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। सवाल यह उठता है कि क्या आम आदमी की सुरक्षा के प्रति उनका अपना कोई उत्तरदायित्व नहीं है? होना तो यह चाहिए था कि यह नेता और राजनीतिक दल खुद इस मुद्दे पर आगे बढ़कर पहल करते लेकिन इसके विपरीत यह राजनीतिक दल और नेता निर्वाचन आयोग द्वारा लगाए जाने वाले प्रतिबंधों का विरोध करने में लगे हुए हैं। एक मात्र कांग्रेस ने ही चुनाव आयोग के प्रतिबंधों से पूर्व खुद आगे आकर अपने चुनावी कार्यक्रमों को रद्द करने का साहस दिखाया था। जिसे अन्य राजनीतिक दलों द्वारा उसकी कमजोरी और मजबूरी बताकर उसका उपहास उड़ाया गया था। वर्तमान की राजनीति की हकीकत यही है कि वहां सच और उचित के लिए कोई स्थान नहीं बचा है। देश में जिस तरह से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं वह वास्तव में अत्यंत चिंताजनक है। हर रोज ढाई से तीन लाख तक नए मरीजों का मिलना और पॉजिटिविटी रेट का 15 प्रतिशत के आसपास तक पहुंच जाना और देश में 15 लाख से अधिक सक्रिय केसों की संख्या हालात की गंभीरता को समझने के लिए काफी है। भले ही चुनाव आयोग ने अभी फिजिकल रैलियों, जनसभा व रोड शोें पर प्रतिबंध 22 जनवरी तक ही लगाया हो लेकिन हालात ऐसे ही रहते हैं तो इस प्रतिबंध की अवधि न सिर्फ बढ़ाई जा सकती है बल्कि पूरे चुनाव के लिए भी हो सकती है। जिन दलों और नेताओं को ऐसा लगता है कि बिना चुनाव प्रचार के कैसा चुनाव? उन्हें चाहिए कि वह चुनाव आयोग और देश की अदालत से अपील करें कि चुनाव को स्थगित किया जाए। क्योंकि जनता के जीवन की सुरक्षा सर्वाेपरि है? इसलिए अगर राजनीतिक दल यह चाहते हैं कि जनता मरती रहे तो मरे चुनाव और चुनाव प्रचार को नहीं रोका जाना चाहिए तो यह संभव नहीं है। चुनाव आयोग को जो संवैधानिक अधिकार है उसके तहत सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को चुनाव आयोग की व्यवस्थाओं को मानना ही पड़ेगा। उनकी मनमानी नहीं चल सकती है। अच्छा हो कि चुनाव आयोग चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले नेताओं व दलों से अधिक सख्ती से निपटें, जिससे जनसुरक्षा सुनिश्चित हो सके।