प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते कल फिर एक बार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने मन की बात सुनाने के लिए देशवासियों के सामने आए। अपने मन की बात के इस 111वें एपिसोड में उन्होने तमाम बड़ी—बड़ी बातें और महत्वपूर्ण मुद्दों पर उपदेश दिया लेकिन इस बार मन की बात में उन्होंने लोक सभा चुनाव 2024 के बारे में एक बड़ी सच्चाई को स्वीकार जरूर किया। उन्होंने इस चुनाव के परिणामों को संविधान की जीत बताया। भले ही उन्होंने यह बात भाजपा और एनडीए को सत्ता में आने के बारे में कही गई हो लेकिन 2024 का चुनाव जिस मुद्दे पर लड़ा गया वह सबसे बड़ा मुद्दा संविधान बचाओ और लोकतंत्र बचाओ का ही मुद्दा था। अबकी बार 400 पार के नारे के साथ चुनाव में जाने वाली भाजपा के नेता जहां अपनी चुनावी सभा में खुल्लम—खुल्ला इस बात का ऐलान करने पर उतर आए थे कि उन्हें 400 पार इसलिए चाहिए जिससे वह संविधान को बदल सके। वहीं विपक्ष के नेता भी इस चुनाव में संविधान की किताब लेकर अपनी जनसभाओं में दिखाई दिए थे उनका साफ कहना था कि यह चुनाव संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए लड़ा जाने वाला चुनाव है। चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जब मीडिया से रूबरू हुए तब भी वह संविधान की प्रति उनके हाथ में थी और उनका आत्मविश्वास सातवेेें आसमान पर था। भले ही भाजपा सबसे बड़े दल और एनडीए सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उनके सामने खड़ी थी और कांग्रेस तथा उसका इंडिया गठबंधन दूसरे पायदान पर था लेकिन फिर भी उनका कहना था कि हम अपने मिशन में 100 प्रतिशत सफल रहे हैं हमारे देश की जनता ने संविधान और लोकतंत्र दोनों को बचा लिया है। आज भले ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नरेंद्र मोदी ही बैठे हो अब स्थितियां 2014 और 2019 वाली कतई भी नहीं है। प्रधानमंत्री लाख कोशिश कर ले यह दिखाने की कि बादशाहत उन्हीं की है और पहले जैसी ही है मगर इस सच्चाई को वह भी जान चुके हैं कि अब पहले जैसा कुछ भी नहीं बचा है। सही मायने में सत्ता पक्ष द्वारा किए जाने वाला कोई भी काम या व्यवहार अगर पहले जैसा होता है तो इससे सरकार की छवि और भी खराब ही होती जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी अगर यह दिल से स्वीकार कर रहे हैं कि इस चुनाव में संविधान और लोकतंत्र की जीत हुई है अब सरकार का कोई भी काम संवैधानिक व्यवस्थाओं और मान्यताओं के अनुकूल ही होना चाहिए। बीते 10 सालों में नेता विपक्ष तथा डिप्टी स्पीकर के पद को जिस तरह से असवैधानिक तरीके से खाली रखा गया उन पदों की बहाली नितांत आवश्यक है नेता विपक्ष का पद तो बहाल हो चुका है क्योंकि इसे सरकार रोक पाने में अक्षम थी लेकिन डिप्टी स्पीकर के पद पर अभी संशय बरकरार है ऐसा नहीं है की बात सिर्फ डिप्टी स्पीकर पर तक ही सीमित है ऐसी तमाम अन्य बातें हैं। ऐसा भी नहीं है कि किसी सत्ताधारी दल द्वारा पहली बार संवैधानिक व्यवस्थाओं को नकारने का काम किया जा रहा है लेकिन यह भी सत्य है की अंतिम जीते संविधान और लोकतंत्र की ही होती है और शासक चाहे कितना भी ताकतवर क्यों न रहा हो उसे इस सच्चाई को जितनी जल्दी स्वीकार कर ले देश के लिए उतना ही बेहतर होगा।