10 साल बाद मिला नेता प्रतिपक्ष

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लोकसभा चुनाव 2024 देश के राजनीतिक, लोकतांत्रिक और संवैधानिक मर्यादाओं तथा परंपराओं में बड़े बदलाव लाने के रूप में याद किया जाएगा। सत्ता पर काबिज लोग देश को जिस तरह मनमाने तरीके से चलाने का काम बीते 10 सालों से करते आ रहे थे वह अब आगे नहीं चलेगा। 4 जून को चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी जिस संविधान की किताब को लेकर प्रचार करते दिखे थे इस किताब को हाथ में लेकर मीडिया से मुखातिब हुए और उन्होंने चुनाव हारने के बाद भी देश की जनता को इसका धन्यवाद देते हुए कहा कि आपने एक मजबूत विपक्ष देकर संविधान और लोकतंत्र को बचा लिया है। जो उनकी बड़ी जीत है वह अब आपके हितों की लड़ाई और मजबूती से लड़ सकेंगे। 10 साल पहले 2014 में जब सत्ता ने असंवैधानिक तरीके से संसद में नेता विपक्ष के जिस पद की हत्या कर दी गई थी वह कल राहुल गांधी के नेता विपक्ष चुने जाने के साथ ही फिर जिंदा हो गया है अब संसद में राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने बैठे नजर आएंगे। उनके सवालों का जवाब अब सरकार को देना ही होगा। उन्हें सुनना भी होगा और उनके किसी भाषण को काटा या छुपाया नहीं जा सकेगा। यही नहीं अब मीडिया भी उनके भाषण को छापने से नहीं बच सकेगा। क्योंकि नेता विपक्ष भारतीय राजनीति में एक संवैधानिक पद है और इस पर बैठे व्यक्ति को कैबिनेट मंत्री को मिलने वाली सभी सुविधाएं प्राप्त होती हैं। 10 साल पहले गलत तर्कों के आधार पर सत्ता पक्ष ने इस पद को समाप्त कर दिया था संविधान में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है कि नेता विपक्ष के लिए राजनीतिक दल के पास कुल सांसद संख्या का 10 फीसदी सांसदों का होना जरूरी है। यह नियम नेता विपक्ष के लिए नहीं है अपितु संसद में किसी भी दल को राजनीतिक मान्यता दिए जाने के संबंध में है। लेकिन मोदी और उनकी टीम ने इसे गलत तरीके से नेता विपक्ष से जोड़ दिया गया और 10 साल तक संसद को नेता विपक्ष विहीन बनाकर रखा गया। संवैधानिक व्यवस्था के हिसाब से सबसे अधिक सांसद संख्या वाले विपक्षी दल का नेता विपक्ष होना चाहिए। दर असल नेता विपक्ष तो बहुत बड़ी बात है मोदी सरकार का प्रयास तो विपक्ष विहीन सरकार का रहा है। हमने उन्हें सदन में यह कहते देखा है कि कांग्रेस आज नेता विपक्ष की हैसियत खो चुका है तो उसके लिए खुद कांग्रेस ही जिम्मेदार है विपक्ष और नेता विपक्ष की लोकतंत्र में क्या अहमियत है इसे हम सभी जानते हैं लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि सरकार के इस गलत काम का विरोध न तो मीडिया ने किया और न ही भाजपा का कोई नेता कर सका। आज लोकसभा के स्पीकर पद के लिए चुनाव हो रहा है यह भी देश के राजनीतिक इतिहास में पहली बार हो रहा है। लेकिन इसकी नौबत भी इसलिए आई है क्योंकि यह भी संवैधानिक मान्यताओं से जुड़ा सवाल है स्पीकर अगर सत्ता पक्ष का होता है तो डिप्टी स्पीकर विपक्ष का होने की परंपरा है। लेकिन स्पीकर के चुनाव से ऐन एक दिन पूर्व राहुल गांधी का नेता विपक्ष चुना जाना 2024 के चुनावी परिणाम का पहला नतीजा है। विपक्ष और नेता विपक्ष की मौजूदगी कम से कम लोकतंत्र के जिंदा होने का एहसास तो करायेगी। सही मायने में मोदी की और उनकी सरकार की असल परीक्षा तो इस उनके तीसरे कार्यकाल में ही होगी। इंतजार कीजिए पिक्चर अभी बाकी है?

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