भले ही 2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व तमाम तरह की शंकाएं व आशंकाएं व्यक्त की जा रही थी कि पता नहीं इसके बाद कोई चुनाव देश में होगा भी या नहीं होगा, लोकतंत्र समाप्त हो जाएगा, संविधान बदल दिया जाएगा, गरीबों—पिछड़ों और अनुसूचितों का आरक्षण छीन लिया जाएगा, अगर भाजपा और एनडीए सरकार बनाने में नाकाम भी रही तब भी मोदी सत्ता नहीं छोड़ने वाले हैं और हालात अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप शासन काल जैसे पैदा हो सकते हैं। यही नहीं चुनावी नतीजों के बाद भी देश के कई राज्यों में टकराव के कारण कानून व्यवस्था बिगड़ने की संभावनाएं भी जताई जा रही थी। लेकिन यह सभी आशंकाएं अब निरर्थक साबित हो चुकी है और यह कमाल हुआ है इस चुनाव के करिश्माई नतीजे के कारण। इसमें कोई संदेह की बात नहीं है कि भाजपा और मोदी सरकार सत्ता के लिए जिस तरह से कुछ भी कर गुजरने पर आमादा दिख रहे थे तथा उसके नेता सार्वजनिक मंचों से संविधान बदलने के लिए भाजपा को 400 सीटें मिलना जरूरी बता रहे थे उससे यह साफ दिख रहा था कि भाजपा किस तरह का विपक्ष विहीन लोकतंत्र और सरकार चाहती थी यह भी किसी से भी छुपा नहीं है। लेकिन इस जनादेश ने न सिर्फ उपरोक्त सभी आशंकाओं को समाप्त कर दिया है बल्कि भाजपा को हराकर और एनडीए को जिताकर एक ऐसा जनादेश दिया है कि भाजपा और एनडीए दोनों को कहीं का भी नहीं छोड़ा है और उनकी हालत उसे व्यक्ति जैसे है जो गर्म दूध मुंह में भर लेता है, जिसे वह न निगल पाता है न उगल पाता है। भले ही एनडीए के पास बहुमत से भी 20 सदस्य संख्या ज्यादा है फिर भी वह सरकार बनाने और उसे चला पाएगा इसका भरोसा उसे भी नहीं हो पा रहा है तो किसी और को क्या होगा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो 9 जून को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने की तैयारी कर रहे हैं वह शपथ लेंगे भी या नहीं अभी तक इस पर भी संशय बना हुआ है। जिन दो अहम सहयोगी दलों के नेता नायडू और नीतीश के भरोसे वह सत्ता संभालने वाले हैं उनकी शर्तों को माने न माने इस अंतर्द्वंद की स्थिति अभी भी बरकरार है खबर यह भी आ रही है कि नीतीश और नायडू के सामने भाजपा और मोदी झुकने को तैयार नहीं है। भाजपा नेता सत्ता के लिए इससे इतर क्या कुछ खेल करने की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं वह सब कुछ आने वाले समय में ही सामने आएंगे। किंतु वर्तमान हालात अत्यंत ही गंभीर स्थिति से गुजर रहे हैं। मतदाताओं ने इस चुनाव में भाजपा के किसी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के मुद्दे को नहीं टिकने दिया और भाजपा नेताओं की शगुफे बाजी और मोदी है तो मुमकिन है पर भरोसा नहीं किया। मायावती और उनके जैसे तमाम नेता जो दशकों से जातीय आधार की राजनीति के जरिए संसद और विधानसभा तक अपनों को पहुंचाने की जो परंपरा चली आ रही थी उसे जनता ने इस बार नकार दिया है। मायावती और उनकी बसपा अपना खाता तक नहीं खोल पाई। क्षेत्रीय क्षत्रप अपने बेटों को चुनाव जिताने में असफल रहे। इस जनादेश ने देश के नेताओं को एक ऐसा सबक सिखाया है कि उन्हें अब आम आदमी के हितों की राजनीति करनी ही पड़ेगी और अगर नहीं करेंगे तो जनता उन्हें कहीं का नहीं छोड़ेगी चाहे वह कितना भी बड़ा दल हो या चेहरा हो उसका कोई वजूद लोकतंत्र में जनता के सामने नहीं टिक सकता है जनतंत्र की इस ताकत को उन्हें सलाम करना ही पड़ेगा।