यात्रियों की सुरक्षा भी जरूरी

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यह सच है कि चारधाम यात्रा उत्तराखंड राज्य की लाइफ लाइन बन चुकी है। हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का चारधाम यात्रा पर आना राज्य सरकार तथा तमाम व्यवसायियों के लिए आय का प्रमुख स्रोत बन चुका है। लेकिन इन यात्रियों की सुरक्षा और सुविधाओं का ख्याल रखे बिना सिर्फ अपनी कमाई पर ही नजर गढ़ाये रखना भी उचित नहीं है। बीते कल केदारनाथ में एक हेलिकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त होने से बाल—बाल बच गया। इसमें सवार यात्रियों की जान तो किसी तरह बच गई किंतु जिन स्थितियों व परिस्थितियों में इसकी आपात लैंडिंग हेलीपैड के पास पहाड़ों के ढलान पर की गई अगर इसकी चपेट में हेलीपैड पर मौजूद यात्री भी आ गए होते तो वह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होती। जब यह हेलीकॉप्टर हवा में लहराता हुआ फिरकी की तरह घूम रहा था तो उसे देखने वालों के होश उड़ गए थे। इस घटना के सामने आने से यात्रियों के मन में डर बैठना स्वाभाविक ही है। दरअसल केदारनाथ यात्रा के लिए जिस तरह भारी भीड़ उमड़ती है तब एक हेलीकॉप्टर सुबह से शाम कितने चक्कर लगाएगा इसका कोई हिसाब नहीं रहता है। हेली सेवा देने वाली कंपनियां अधिक से अधिक यात्रियों को ढोकर अधिक से अधिक कमाई से आगे यात्रियों की सुरक्षा पर ध्यान देने को तैयार नहीं होती है। इस दुर्घटना की जांच के बाद ही पता चल सकेगा कि असल कारण क्या था। लेकिन यात्रियों की जान के साथ होने वाले किसी भी खिलवाड़ को उचित नहीं माना जा सकता है। खास बात यह है कि चाहे वह हेली कंपनियां हो या फिर टूर ऑपरेटर तथा यात्रा मार्गों पर दौड़ने वाले वाहन और यात्रा मार्गाे पर कारोबार करने वाले व्यापारी, होटल व्यवसायी हो या तीर्थ पुरोहित, पंडा और पुजारी वह किसी भी कीमत पर अधिक से अधिक यात्रियों के आने में ही अपना हित देखते रहे हैं उन्हें न तो सड़कों पर भारी भीड़ और जाम में फंसे रहने वाले यात्रियों की परेशानियों से कोई सरोकार है न विभिन्न कारणों से अपनी जान गवाने वालों से कुछ लेना—देना है। शासन प्रशासन के स्तर पर अगर कुछ नियम कानून बनाए जाते हैं तो लोग उसके विरोध पर उतर आते हैं। अभी धामों के कपाट खुलने के साथ गंगोत्री पैदल मार्ग पर कई किलोमीटर लंबा जाम लग गया और बूढ़े—बच्चे तथा महिलाओं को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। अगले दिन प्रशासन ने भीड़ पर नियंत्रण किया तो धाम के पंडा—पुजारी और व्यवसायी प्रदर्शन पर उतर आए। अब तक इस यात्रा के दौरान 45 लोगों की जान जा चुकी है। यात्रा के प्रारंभिक दौर में वैसे भी यात्रियों का अधिक दबाव रहता है जिसके कारण धामों में न तो ठीक से दर्शन हो पाते हैं और सुरक्षा व्यवस्था भी चरमरा जाती है। यात्रा के प्रारंभिक दौर से भीड़ को नियंत्रित करने के तमाम प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन स्थिति 15 दिन बाद भी जस की तस बनी हुई है। लोग अपनी जान हथेली पर रखकर यात्रा कर रहे हैं। उन्हें खान—पान की वस्तुओं से लेकर पेयजल और अन्य सुविधाये भी ठीक से मुहैया नहीं हो पा रही है। इस साल 26 लाख से अधिक रजिस्ट्रेशन हो चुके हैं बीते साल 50 लाख से अधिक यात्री चार धाम आए थे। अगर रजिस्ट्रेशन पर रोक न लगाई गई होती तो यह आंकड़ा कब का पार हो चुका होता। हर साल यात्रा के दौरान सैकड़ो की संख्या में लोगों की जान जाती है। कई भीषण सड़क हादसे होते हैं क्योंकि चार धाम यात्रा का सफर कोई आसान सफर नहीं है। शासन—प्रशासन और स्थानीय व्यवसायियों को सिर्फ अपनी कमाई के बारे में सोचने के साथ कुछ ऊपर उठकर यात्रियों की सुरक्षा और समस्याओं पर भी सोचना चाहिए जिससे चार धाम यात्रा सुगम सुरक्षित और आसान बन सके।

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