आपने सुना होगा कि जब आदमी का वक्त खराब होता है तो ऊंट पर बैठे आदमी को भी कुत्ता काट लेता है। 22 जनवरी को जब अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम चल रहा था तो देश—विदेश के हजारों विशिष्ट अति विशिष्ट मेहमानों का जमावड़ा था देश भर से राम भक्तों की भारी भीड़ अयोध्या की ओर उमड़ रही थी। हालात इतनी विकट हो चले थे कि अयोध्या की सीमाएं सील करनी पड़ी और सरकार को लोगों से अपील करनी पड़ी कि वह अभी अयोध्या की यात्रा पर न आए। हर तरफ बस एक ही धुन सुनाई पड़ रही थी कि मेरे घर राम आए हैं। भाजपा के नेता जो सालों से इस दिन की तैयारी में जुटे थे उन्हें भी इस तरह की राम लहर की उम्मीद नहीं थी। लेकिन न जाने किसकी बुरी नजर लग गई 22 फरवरी आते—आते सब कुछ उलट पलट होने लगा। चंडीगढ़ मेयर चुनाव में सत्ता की चोरी पकडे जाने और सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनाव अधिकारी के फैसले को पलट कर भाजपा प्रत्याशी की जगह आम आदमी पार्टी प्रत्याशी को मेयर घोषित करने से जो वक्त का पहिया उल्टा घूमा वह अभी तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। उसके बाद मोदी सरकार के इलेक्टोरल बांड को असंवैधानिक ठहराया जाना और चुनावी चंदे के सारे राज रहस्योंं से पर्दा उठने से भाजपा अनेकों अनेक सवालों के घेरे में आकर खड़ी हो गई। सरकार के नोटबंदी से लेकर वह पीएम केयर फंड जिसमें देश की तमाम संस्थाओं और व्यक्तियों ने दिल खोलकर कोरोना पीड़ितों की मदद के लिए पैसा दिया था हजारों करोड़ के इस फंड को लेकर देश के लोग उसे समय भौचक्के रह गए जब सरकार ने कोर्ट में हलफनामा देकर यह कह दिया कि उसका सरकार से कोई सरोकार नहीं है। पीएम के नाम से संचालित होने वाले व पीएमओ दफ्तर में इसका कार्यालय होन,े गृहमंत्री व वित्त मंत्री के सदस्य वाले इस फंड का पैसा किसका है इसका किसी के पास जवाब नहीं और न उसका कोई ऑडिट हो यह कोई मामूली बात नहीं है। न खाऊंगा न खाने दूंगा और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार बेदाग सरकार का दावा करने वाले जब एक साथ कई सवालों से घिर गए तो फिर ईडी और सीबीआई के छापे और नेताओं की गिरफ्तारियों पर उतर आए। दो राज्यों के मुख्यमंत्री जब जेल पहुंच गए तो विपक्ष का आग बबूला होना स्वाभाविक ही है। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को ईडी से पूछना ही पड़ गया कि भ्रष्टाचारियों की सूची में कितने सांसद और विधायक है तो पता चला कि 126 सांसद व विधायक है। खास बात यह है कि यह सभी विपक्षी दलों के ही है। 30 मार्च को दिल्ली में समूचा विपक्ष इस मुद्दे पर इकट्ठा होने वाला है। मामले ने जब तूल पकड़ लिया और अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी में यह तथ्य सामने आ गए हैं कि पैसा भाजपा के पास गया है तो सरकार को अपनी गलती समझ आने लगी है। और उसने अब ईडी द्वारा की जाने वाली गिरफ्तारियों पर 19 अप्रैल यानी प्रथम चरण के मतदान होने तक रोक लगा दी है। बात चाहे ईडी व सीबीआई के अनुचित इस्तेमाल की हो या फिर राहुल के शक्ति के खिलाफ लड़ाई वाले बयान की। भाजपा का हर दांव 22 जनवरी के बाद उल्टा ही पड़ रहा है। भाजपा नेताओं की जुबान पर अब न 400 पार रहा है न विकसित भारत। भाजपा नेताओं के रणनीतिकार अब डिफेंसिव मोड में आ चुके हैं। भले ही विपक्ष बिखरा पड़ा हो लेकिन भाजपा के लिए 2024 कोई आसान टास्क नहीं रह गया है। क्योंकि बात अब संविधान व लोकतंत्र बचाओ की लड़ाई में तब्दील हो चुकी है। सत्ता की गोदी में बैठे मीडिया को जनता ने अब दौड़ाना शुरू कर दिया अब खबरों के भी कोई मायने नहीं रह गए और यह चुनाव पूरी तरह जनता का चुनाव बन चुका है।