भ्रष्टाचार पर संवेदनहीनता

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भ्रष्टाचार का मुद्दा देश के नेताओं के लिए जैसे शिष्टाचार का मुद्दा हो गया है और भ्रष्टाचार पर राजनीतिक दलों के जीरो टॉलरेंस की बात एक तकिया कलाम। उत्तराखंड की राजनीति में एक बार फिर तूल पकड़ते जा रहे भर्ती घोटाले की आज अभी शांत नहीं हो पाई है कि उघान घोटाले और पाखरो टाइगर सफारी घोटाले को लेकर पक्ष विपक्ष आमने—सामने हैं। खास बात यह है कि हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इन दोनों ही मामलों की जांच सीबीआई द्वारा की जा रही है जिसके कारण नेताओं की धड़कनें तेज हो गई है। दोनों ही घोटाले बीजेपी के कार्यकाल में हुए हैं इसलिए कांग्रेस के तेवर अत्यंत ही तल्ख दिखाई दे रहे हैं। इन बड़े मामलों के खुलासे से एक बात तो साफ हो गई है कि भ्रष्टाचार के मामलों में रत्ती भर भी कमी नहीं आई है जबकि सत्तारूढ़ भाजपा के नेता अभी भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जीरो टॉलरेंस की नीति का ही ढोल पीट रहे हैं। 2017 के चुनाव में जीत के बाद जब त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी तब उन्होंने अपनी पहली पत्रकार वार्ता में भ्रष्टाचार पर सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति का उद्घोष किया था। वही उन्होंने भाजपा के चुनावी दृष्टि पत्र में किए गए वायदे को पूरा करने के लिए अपनी सरकार के पहले ही विधानसभा सत्र में लोकायुक्त का प्रस्ताव भी सदन में लाया गया था लेकिन विडंबना देखिए कि एनएच 94 जमीन घोटाले की सीबीआई जांच की संस्तुति के लिए केंद्र को भेजे गए पत्र के जवाब में उनको केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री की फटकार और नसीहत ही मिल सकी। नितिन गडकरी का यह पत्र आम होने के कारण बहुत चर्चा में भी रहा था इसके बाद सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की हालत तो यह हो गई कि उन्हें राज्य में भ्रष्टाचार दिखाना ही बंद हो गया। एक पत्रकार वार्ता में पत्रकारों ने उनसे जब यह पूछा कि लोकायुक्त प्रस्ताव का क्या हुआ तो उनका जवाब था कि जब राज्य में भ्रष्टाचार ही नहीं रहा तो लोकायुक्त की क्या जरूरत है भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस हमारी सरकार की नीति रही है अब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भटृ उघान घोटाले को लेकर यही कह रहे हैं। सवाल यह है कि राज्य में जब घोटाले पर घोटाले होते जा रहे हैं तो सरकार की इस जीरो टॉलरेंस की नीति का क्या फायदा जिसे एक तकिया कलाम बना लिया गया है। अभी बीते दिनों हाईकोर्ट द्वारा लोकायुक्त की नियुक्ति के बिना राज्य में चलाए जा रहे लोकायुक्त कार्यालय और उस पर किए जा रहे लाखों रुपए महीने के खर्च को लेकर सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए इस खर्च पर रोक लगा दी गई थी। साथ ही वर्तमान सरकार को कुछ महीनो का समय देते हुए लोकायुक्त की नियुक्ति का आदेश दिया गया था तब जाकर सरकार ने इसकी प्रक्रिया को शुरू किया है हालांकि अभी लोकायुक्त की नियुक्ति तो हो तो नहीं पाई है देखना है कि कब तक हो पाती है? मगर एक बात जरूर साफ है कि भ्रष्टाचार को रोकने को लेकर सूबे की कोई भी सरकार अब तक संवेदनशील नहीं रही है। वरना इसे रोकने के कुछ तो कारगर कदम उठाये ही गए होते। हां भ्रष्टाचार का यह मुद्दा अभी भी सूबे के नेताओं के लिए एक अहम चुनावी मुद्दा जरूर बना हुआ है। इस भ्रष्टाचार की बीमारी के लिए जो एक लाइलाज बीमारी बन चुकी है, भाजपा और कांग्रेस समान रूप से जिम्मेदार हैं और सफेद पोशों की गर्दन बचाने के लिए भ्रष्टाचार को राज्य गठन से लेकर अब तक पोषित किया जा रहा है।

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