जमीनों की सुरक्षा का सवाल

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उत्तराखंड राज्य गठन के बाद अगर किसी चीज की लूट—खसोट हुई है तो वह जमीन ही है। राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में छिपी भविष्य की संभावनाओं पर नजरें गड़ाए बैठे भू—माफियाओं ने इसे अपनी कमाई का स्रोत समझ लिया और उसे ओने पौने दाम में जहां भी जितनी भी जमीन मिली उसे खरीद लिया या फिर उस पर कब्जा कर लिया। उत्तराखंड में जमीनों का धंधा इस कदर मुफीद हो गया कि राज्य का हर तीसरा व्यक्ति प्रॉपर्टी डीलर बन गया। जिसने जमीनों की खरीद—फरोख्त की उसकी तो चांदी हो ही गई जिसने जमीनों की खरीद—फरोख्त में दलाली की उसके भी बल्ले—बल्ले हो गए। समय के साथ—साथ जमीनों के धंधे में फर्जीवाड़ा भी इसका एक हिस्सा बन गया। जमीनों के दस्तावेजों में हेरफेर करने या कराने के तमाम मामले अब तक सामने आ चुके हैं इन भू—माफियाओं की स्थिति यह है कि वह किसी की भी जमीन के फर्जी दस्तावेज बनवा कर बेच डालें। यही नहीं एक ही जमीन को कई अलग—अलग लोगों को बेच दे। अभी बीते दिनों सीएम धामी ने धार्मिक संरचनाओं की आड़ में कब्जाई गई जमीनों पर बुलडोजर की कार्यवाही शुरू की गई थी यह एक अलग पहलू है लेकिन राज्य में निजी भूमि ही नहीं सरकारी और वन भूमि पर व्यापक स्तर पर अवैध कब्जे हुए हैं। राज्य की तमाम नदियों और नालों—खालों के किनारे हजारों अवैध बस्तियां बस चुकी है जिनसे अब जमीनों को मुक्त कराना सरकार के लिए भी चुनौती ही नहीं बना है बल्कि अत्यंत ही मुश्किल दिख रहा है। अब जब शासन—प्रशासन द्वारा इस पर कार्यवाही शुरू की गई है तो राज्य में हड़कंप मचा हुआ है। अभी ऋषिकेश आईडीपीएल का मामला सामने आया, इससे पूर्व हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण का मुद्दा सुर्खियों में रहा था। उससे पहले स्टूट्रेजिया भूमि घोटाले की गूंज रही थी। कहां—कहां किस—किस तरह जमीनों की लूट खसोट हुई है इसका हिसाब किताब इतना लंबा है कि उसे लिखा जाना भी संभव नहीं है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि हर नागरिक की संपत्ति सुरक्षित रहेगी? सीएम की इस बात पर आज भरोसा कर सकते हैं लेकिन सरकार पहले अपनी जमीनों की सुरक्षा तो कर ले। सच यह है कि सरकारी और वन भूमि की जमीनों पर ही सबसे अधिक अवैध कब्जे है। माफिया ने शहरों की तो बात ही छोड़ दीजिए पहाड़ो तक को बेच डाला है। सरकार ने गैरसैंण में राजधानी के लिए भूमि पूजन भी नहीं किया था उससे पहले ही यहां माफिया ने तमाम आसपास की जमीनों को खरीद लिया था और सरकार ने जब यहां खरीद—फरोख्त पर रोक लगाई तब तक खेला हो चुका था। यह एक उदाहरण भर है खास बात यह है कि इस जमीनों के खेला में नेताओं और अधिकारियों की अहम भूमिका रही है। कई नेताओं और अधिकारियों पर जमीनों के फर्जीवाड़े के बाद न्यायालयों में मामले विचाराधीन हैं। इस खेला में अधिकारियों और नेताओं ने भी खूब बहती गंगा में हाथ धोए हैं। अभी जब पेपर लीक का मामला सामने आया था तो भाजपा के नेता हाकम सिंह की संपत्ति पर बुलडोजर की कार्रवाई हुई थी जो अतिक्रमण कर वन भूमि की जमीन पर बनी थी। हाकम सिंह तो एक उदाहरण भर है सूबे में न जाने ऐसे कितने हाकम होंगे। सवाल यह है कि सीएम धामी किस—किस जमीन की सुरक्षा करेंगे और किस—किस से सुरक्षा करेंगे।

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