दिशा भ्रमित राजनीति का दौर

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इसे आप चाहे तो नए दौर की राजनीति का नया मिजाज भी कह सकते हैं कि जब भी देश में कोई चुनाव होता है तो उसकी शुरुआत आम जनता से जुड़े मुद्दों से ही होती है लेकिन चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों तक यह मुद्दे पूरी तरह से गायब हो जाते हैं और चुनाव धार्मिक और जातीय सांप्रदायिकता पर केंद्रित होकर रह जाता है। बीते कुछ सालों में देश में जिस तेजी से महंगाई और बेरोजगारी बढ़ी है तथा गरीबी बढ़ी है वह देश की सबसे बड़ी समस्या है। कारण चाहे महामारी हो, नोटबंदी हो या फिर जीएसटी, लेकिन बीते 2 सालों के हालात ने देश के 23 करोड़ों लोगों को गरीबी की भटृी में झौंक दिया है। यह वह लोग थे जो गरीबी की रेखा से ऊपर आने का प्रयास कर रहे थे। अभी उत्तर प्रदेश के एक व्यवसाई के आत्महत्या का वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वह मौत से पहले देश की सरकार और मोदी के बारे में भला बुरा कह रहा था। अपनी व्यवसायिक और आर्थिक तंगी के कारण अपनी पत्नी के साथ आत्महत्या का यह मामला किसी का भी दिल दहलाने वाला था। गृह राज्य मंत्री ने अभी राज्यसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि बीते 3 सालों में कर्ज और बेरोजगारी के कारण 25 लोगों ने आत्महत्या की है। 2020 यानी कि बीते साल में सिर्फ बेरोजगारी से परेशान होकर 3548 युवाओं ने अपनी जान दी है। सवाल यह है कि प्रधानमंत्री मोदी किस आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं जहां किसान और नौजवान और गरीबी से बेहाल लोग आत्महत्याओं पर विवश हैं। सरकार जिन स्टार्टअप, मेक इन इंडिया व लोकल फार वोकल और डिजिटल इंडिया जैसे कामों से हिंदुस्तान को आत्मनिर्भर बनाने की बात कहती है उससे क्या देश की गरीबी और बेरोजगारी की समस्या का समाधान संभव है? चुनाव के दौरान इन दिनों भाजपा को जो टाइटल सॉन्ग सुनाई दे रहा है वह है ट्टजो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे’ टीवी चैनलों पर जो डिवेट सुनाई दे रही है वह हिजाब पर सियासी हिसाब जैसे मुद्दे हैं। अयोध्या, काशी और मथुरा या फिर चार धाम जैसे मुद्दे नेताओं की चुनावी सभाओं में सुनाई दे रहे हैं। इसके अतिरिक्त अगर कुछ सुनाई दे रहा है तो वह बिजली मुफ्त, पानी मुफ्त, राशन या मोबाइल मुफ्त। गरीबी और बेरोजगारी तथा महंगाई पर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं होता है। पीएम मोदी का कहना है कि भारत में महंगाई दर तो 5 फीसदी के आसपास है जबकि अमेरिका में 1.5 फीसदी है। प्रधानमंत्री लेकिन इस बात को भूल जाते हैं कि अमेरिका में गरीबी कितनी है भारत के साथ अमेरिका की तुलना कितनी सही है। विपक्षी नेता राहुल गांधी की बात को भले ही सत्ता में बैठे लोग हंसी में उड़ा रहे हो लेकिन जिस तरह से देश में मुट्ठी भर अमीर और अमीर हो रहे है तथा गरीब और अधिक गरीब होते जा रहे हैं क्या यह हिंदुस्तान में बन रहे दो हिंदुस्तान नहीं है। क्या देश में बिगड़ता सामाजिक व आर्थिक संतुलन एक बड़ी समस्या नहीं है। सही मायने में वर्तमान की राजनीति का यह एक भ्रामक काल है दिशा भ्रमित राजनीति का यह दौर देश व देशवासियों के लिए बड़ी चिंता का विषय है।

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