बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं

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उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में यूं तो अमूमन कुछ न कुछ ऐसी खबरें आती ही रहती हैं जो उसकी बदहाल व्यवस्था को बताती रहती हैं। लेकिन अगर एक पूर्व काबीना मंत्री को राज्य के उस एम्स अस्पताल में भी अगर इलाज नहीं मिल पाता है जिसके बारे में सत्ता में बैठे लोग अपनी उपलब्धियों का ढोल पीटते नहीं थकते हैं तो यह अत्यंत ही चिंतनीय मुद्दा है। खास बात यह है कि एम्स की बदइंतजामी और स्टाफ की बेरुखी से पूर्व काबीना मंत्री और उनके परिजन इस कदर आहत हुए कि रात के दस बजे बिना बताए अस्पताल से छुटृी लेकर चले आए। इस उपेक्षा का शिकार कोई और नहीं पूर्व काबीना मंत्री मोहन सिंह रावत को होना पड़ा है। अभी चंद दिन पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दून के परेड ग्राउंड से जनमानस को संबोधित करते हुए कह रहे थे कि 2021 का दशक उत्तराखंड के विकास का दशक होगा। उन्होंने हरिद्वार में मेडिकल कॉलेज का उद्घाटन करते हुए कहा था कि उनकी सरकार राज्य के हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने जा रही है। इससे पूर्व वह ऋषिकेश एम्स में ऑक्सीजन प्लांट का उद्घाटन करने के लिए आए थे। तब भी उन्होंने कहा था कि अब राज्य में सभी को बेहतर इलाज मिल सकेगा। सभी की बात तो छोड़िए जब एक पूर्व कैबिनेट मंत्री को इस एम्स में इलाज नहीं मिल सकता तो आम आदमी की क्या सुनवाई होती होगी इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। दूसरी अहम बात यह है कि जब एम्स में एक पूर्व मंत्री को भी तीन दिन बाद उसकी सिटी स्कैन रिपोर्ट मिलने या देने की बात कही जा सकती है तो ऐसे एम्स में आम आदमी क्या इलाज की उम्मीद तलाश सकता है? जब तक उसका इलाज शुरू हो पाएगा तब तक तो मरीज रहेगा न मर्ज। अस्पताल प्रशासन भले ही अब इस मामले की जांच कराने की बात कह रहा हो लेकिन अस्पताल प्रशासन ही नहीं अन्य स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने भी गांव वासी की बात सुनने की जरूरत नहीं समझी। जब इतना कुछ ऋषिकेश एम्स में एक पूर्व मंत्री के साथ हो सकता है तो राज्य के जिला अस्पतालों और अन्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति क्या होगी। पहाड़ के जिला अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्र तो सिर्फ रेफर सेंटर का ही काम करते हैं वहां न तो विशेषज्ञ डॉक्टर उपलब्ध है और न ही दवाई और जांच के लिए जरूरी मशीनें हैं। अभी विधानसभा सत्र में राज्य में वेंटिलेटर सुविधा का मुद्दा उठाया गया तो सरकार ने 1457 वेंटिलेटर खरीदने की जानकारी दी थी। सवाल यह है कि सरकार के पास सिर्फ 70 वेंटिलेटर चला पाने वाले डॉक्टर उपलब्ध हैं तो इन वेंटीलेटरों का होगा क्या? स्वास्थ्य विभाग द्वारा कोरोना काल में टीका रखने के लिए तथा अन्य दवाइयों के लिए बड़ी संख्या में डीप फ्रीजर व अन्य उपकरण खरीदे गए थे जो निदेशालय में बारिश में सड़ने के लिए छोड़ दिए गए थे ऐसी स्थिति में जब सरकार या स्वास्थ्य विभाग की कुछ करने की मंशा ही न हो तो इस स्थिति में सुधार की क्या उम्मीद की जा सकती है।

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