नारों से ज्यादा काम जरूरी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 75वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दिए गए अपने राष्ट्रीय संबोधन में एक स्वर्णिम देश की जो तस्वीर पेश की गई है वह काबिले तारीफ है। कहा जाता है कि अगर बड़ा बनना है तो बड़े—बड़े सपने देखो। प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि सपनों को सच करने का यही समय सही समय है। उनके द्वारा सबको घर से लेकर हर घर नल और उज्जवला योजना पहुंचाने से लेकर स्वच्छ भारत की बात करते हुए करोड़ शौचालय बनवाने व जनधन खातों के खोले जाने की बात करते हुए कहा गया है कि यह सब पहले भी हो सकता था लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों ने कुछ किया ही नहीं। उनके संबोधन को लेकर छिड़ी बहस में उनके समर्थकों ने कहा है कि सब कुछ मोदी के कार्यकाल में ही हुआ है वहीं कुछ अन्य लोगों ने कहा कि उनके कार्यकाल में कुछ भी नया नहीं हुआ है। जबकि सब पुरानी योजनाएं हैं। सही मायने में यह बहस निरर्थक है क्योंकि आज देश जिस भी मुकाम पर खड़ा है वह दो—चार और दस साल में संभव नहीं हुआ है इसमें पूरे 74 साल का अथक श्रम लगा है एक समय ऐसा भी था जब देश की साक्षरता दर मात्र 30— 32 फीसदी थी जो आज 78 फीसदी है। हाल के दशक में पड़े सूखे के दौरान देश में अकाल की स्थिति थी और 20 लाख टन खाघान्न आयात करना पड़ा था। जबकि आज मोदी सरकार लाखों टन खाघान्न गरीबों को मुफ्त बांटने की स्थिति में है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय में देश में लागू की गई आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया और स्वर्गीय राजीव गांधी के कार्यकाल में आईटी सेक्टर में किए गए कामों का ही नतीजा है कि आज भारत आने वाले समय में विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक ताकत बनने का सपना देख रहा है और प्रधानमंत्री डिजिटल भारत बना रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी आज अगर आत्मनिर्भर भारत और वोकल फार लोकल की बात भी कर पा रहे हैं तो वह इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि उनकी पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा उन्हें एक ऐसा प्लेटफार्म तैयार करके दिया है जो अब आपकी डीजीपी को दहाई के अंक की ओर ले जाने की क्षमता रखता है। प्रधानमंत्री मोदी को चाहिए कि वह श्रेय बटोरने या सत्ता के लिए राजनीति करने से ऊपर उठकर सोचना शुरू करें। काला धन लाएंगे और गरीबों के खातों में 15—15 लाख रुपए डालेंगे तथा छोटा किसान देश की शान जैसी बातों से कुछ नहीं होगा उन्हें यथार्थ को स्वीकार करना चाहिए कि जिस देश की तरक्की का रास्ता गांव से मजदूर और किसानों से होकर जाता है उस देश के किसानों और मजदूरों की आजादी के 74 साल बाद भी जितनी बदतर स्थिति है अन्य किसी की भी नहीं है। किसानों की आय दोगुना 500 रूपये की सम्मान निधि नहीं हो सकती न ही छोटा किसान देश की शान बन सकता है। न उनकी किसान रेल किसानों को अमीर बना सकती है इसके लिए ठोस योजना व काम करना जरूरी है।

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